किताब लिख सकता हूँ,
कह नहीं सकता,
लफ़्ज तो हैं मग़र,
बात इतनी छोटी नहीं...
कितना कबसे पता कहाँ,
तुम पूछतीं तो बता न पाता,
नज़रें मैंने मिला तो लीं,
तुम न हटातीं तो मैं भी हटा न पाता....
खुलकर तुमसे कहता क्या,
कोई पूछा तब भी जाना नहीं,
इश्क़ मुश्क लग गया जहाँ,
कितना भी ढकता मैं छुपा न पाता...
शायरों से सीखी थी, ऐसे नहीं,
कोई मुझको समझा पाया भी नहीं,
कोई कहता भी के भूल जाओ उसे,
कितना भी कहता मैं भुला न पाता...
तुमने भी बढ़कर थामा नहीं,
मैं भी कब तक हाँथ बढ़ाता,
लेकिन अगर पकड़ लेता ना,
कितना भी करता कोई छुड़ा न पाता...
एक आख़िरी बात थी कहनी,
कल भी तुम थीं, आज भी तुम हो,
अब भी तुम हो और आगे भी,
बिना तुम्हारे बड़ी दूर चला हूँ
मैं भी तुम्हारे साथ,
कमबख्त कोई ताजमहल बन गया जैसे,
दिल मेरा तेरी मोहब्बत का
कब्रगाह बन गया जैसे,
कितना मिटाया मिटता ही नहीं,
दिल मेरा क़िताब पे लिखा
तेरा नाम बन गया जैसे,
लिखा भी तो मैंने ही था,
कितना भी करता कोई मिटा न पाता...
Dec 13, 2021 1:00 AM