Tuesday, February 15, 2022

महसूस

मैंने महसूस किया है

पत्थरों सा लुढ़कना

लुढ़कते हुए दूसरे पत्थरों से टकराना,

फिर ठहर जाने को 

मैंने महसूस किया है

नज़रों का बदलना

बातों का सिमटना

मन का धुंधलापन

अपनों में घटते अपनेपन को

मैंने महसूस किया है

किस्मत का बदलते रुख

लोगों के बदलते चेहरे

दोस्ती के बदलते पैमाने

रिश्तों की बदलती गहराई को

मैंने महसूस किया है

उसके चेहरे की फैली चांदनी

उसकी आँखों की काली सुरंग

उसके लबों पर गुलाब की पत्तियां

उसके बालों से गुज़रती हवाओं को

मैंने महसूस किया है

उसके बहते आंसुओं को

उसके अंदर बिखरे दर्द को

उसके होठों पर ठहरी बात को

उसके अंदर कांपते जज़्बात को

मैंने महसूस किया है

अपने भीतर एक जलन को

अपने मरते हुए इंसान को

अपनी खुशियों के दम घुटने को

खुदके इस्तेमाल किये जाने को

मैंने महसूस किया है

यादों में सिमटती रात को

तन्हाई में बीते हालात को

पन्नों पे बिखरे हुए ख़यालात को

अंधेरों में निकले हुए सूरज को

और चांदनी काटते हुए दिन को

मैंने महसूस किया है


Feb 15, 2022      11:10 PM

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