एक सवाल उठा है मन में
याद रखूं या भूल जाऊं तुम्हें
कैसे भूलूँ सुबह की किरणें
कैसे भूलूँ तन्हाई
सभी जगह बस तुम ही तुम हो
तुम ही मेरी परछाईं
रात के कोहरे में भी तुम हो
तुम ही धूप सबल छायी
फूलों में देखा है तुमको
तुम्हीं महक बनके आईं
किसी तेज़ चंचल हवा में
किसी पेड़ की कनकलता में
नदी बनी चलती जाती हो
पल पल लेती अंगड़ाई
एक नदी तो तुम भी हो
सभी घाट तुममें मिलते
कोई किनारा टूट न जाये
बड़ा संभल कर चलती हो
खड़ा हूँ मैं भी बीच धार में
कुछ तो ध्यान करो मेरा
इस पार रहूँ उस पार रहूँ
या मुझे डूबा दो बीच घनेरा
मुझे खींच ले जाओ धार में
मुझे मिला लो अपने रंग में
मुझे रात की नींद भी दे दो
कभी तो देखूं एक सवेरा
आज फंसा हूँ अंतर्द्वंद में
तुम ही दिखती हो कण कण में
कैसे तुमसे नज़र फेरूं
कैसे देखूं कोई नज़ारा
नज़र भी तुम हो
दरस भी तुम हो
और चमकता उजियारा
May 2, 2021 11:25 PM
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