मुझे तुम याद आती हो
शाम की बहती हुई नदी की तरह
सारे आकाश में फैली
बादलों के बीच में
तन्हाई समेटे हुए
अंगड़ाई लेती हुई
चेहरे पर उदासी की परत के साथ
बर्फ से लिपटी हुई चादर ओढ़े
मुझे तुम याद आती हो
खुशबुओं की बहार की तरह
दूर से आती हुई बहकते बहकाते
कितने दरिया कितने तूफान
अपने आप में समेटे हुए
चुपचाप धीरे धीरे से
रात को नींद न मिली आँखों के साथ
सुबह की किरणों से रंगी हुई
मुझे तुम याद आती हो
फरवरी की हल्की धूप सी
मुझे देखकर चहकते चेहकाते
रुक जाना सोचने लग जाना
अपने बालों को कानों के पीछे
चुपचाप बालियों में छुपाती
जाते जाते एक आख़िरी नज़र
मुझे देखने को पलटती हुई
मुझे तुम याद आती हो
दो हाथियों के वजन के बराबर
थकान अपने कंधों पर लिए
झरनों की तरह बहती धारा सी
मेरे सामने खिलखिलाती
हरी शर्ट में टहलती बहलती
बारिशों की तरह टप टप करती
मेरी बातें चुपचाप सुनती हुई
मुझे तुम याद आती हो
मेरे आसपास न दिखने पर
मुझे ढूंढती हुई आँखों के साथ
मुड़ मुड़ कर देखती इधर उधर
मेरे कहीं से आ जाने पर
चैन की सांस लेती
डायरी की पन्नों पर
न जाने किसके चेहरे बनाती हुई
मुझे तुम याद आती हो
चिड़चिड़ाती बारिश की तरह बरसती
मेरी बेचैनी को न समझती
बिखरे बिखरे बालों को अपने
रबरबैंड से उठाती लपेटती
अपनी काली बिंदी ठीक करती
भूख प्यास से दूर भागती
अपनी सहेलियों को बताती हुई
मुझे तुम याद आती हो
क्या मैं भी तुम्हें याद हूँ?
नज़रें झुकाये हुए तुम्हें देखता
हज़ारों बातों की परत दर परत
तुमसे करने को बैठा चुपचाप
रात भर तुम्हारी याद में जागी
आँखों से तुम्हें देखकर
अपनी फैली हुई तन्हाई को समेटता
अपनी बेचैनियों को छुपाये हुए
क्या मैं भी तुम्हें याद हूँ?
तुम्हें ढूंढता रहता हूँ पल पल
बादलों की ओट में
पत्तियों के पीछे से तुम्हें खोजता
मैं अकेला आज भी बैठा हुआ हूँ
तुम्हारी एक झलक के लिए व्याकुल
तुम्हारे इनकार में तुम्हारे इंतज़ार में...
Written between July 24-28 July, 2025