Tuesday, July 29, 2025

चिक्की

मुझे तुम याद आती हो

शाम की बहती हुई नदी की तरह

सारे आकाश में फैली

बादलों के बीच में

तन्हाई समेटे हुए

अंगड़ाई लेती हुई

चेहरे पर उदासी की परत के साथ

बर्फ से लिपटी हुई चादर ओढ़े

मुझे तुम याद आती हो

खुशबुओं की बहार की तरह

दूर से आती हुई बहकते बहकाते

कितने दरिया कितने तूफान

अपने आप में समेटे हुए

चुपचाप धीरे धीरे से

रात को नींद न मिली आँखों के साथ

सुबह की किरणों से रंगी हुई

मुझे तुम याद आती हो

फरवरी की हल्की धूप सी

मुझे देखकर चहकते चेहकाते

रुक जाना सोचने लग जाना

अपने बालों को कानों के पीछे

चुपचाप बालियों में छुपाती

जाते जाते एक आख़िरी नज़र

मुझे देखने को पलटती हुई

मुझे तुम याद आती हो

दो हाथियों के वजन के बराबर

थकान अपने कंधों पर लिए

झरनों की तरह बहती धारा सी

मेरे सामने खिलखिलाती

हरी शर्ट में टहलती बहलती

बारिशों की तरह टप टप करती

मेरी बातें चुपचाप सुनती हुई

मुझे तुम याद आती हो

मेरे आसपास न दिखने पर

मुझे ढूंढती हुई आँखों के साथ

मुड़ मुड़ कर देखती इधर उधर

मेरे कहीं से आ जाने पर

चैन की सांस लेती

डायरी की पन्नों पर

न जाने किसके चेहरे बनाती हुई

मुझे तुम याद आती हो

चिड़चिड़ाती बारिश की तरह बरसती

मेरी बेचैनी को न समझती

बिखरे बिखरे बालों को अपने

रबरबैंड से उठाती लपेटती

अपनी काली बिंदी ठीक करती

भूख प्यास से दूर भागती

अपनी सहेलियों को बताती हुई

मुझे तुम याद आती हो

क्या मैं भी तुम्हें याद हूँ?

नज़रें झुकाये हुए तुम्हें देखता

हज़ारों बातों की परत दर परत

तुमसे करने को बैठा चुपचाप

रात भर तुम्हारी याद में जागी

आँखों से तुम्हें देखकर

अपनी फैली हुई तन्हाई को समेटता

अपनी बेचैनियों को छुपाये हुए

क्या मैं भी तुम्हें याद हूँ?

तुम्हें ढूंढता रहता हूँ पल पल

बादलों की ओट में

पत्तियों के पीछे से तुम्हें खोजता

मैं अकेला आज भी बैठा हुआ हूँ

तुम्हारी एक झलक के लिए व्याकुल

तुम्हारे इनकार में तुम्हारे इंतज़ार में...


Written between July 24-28 July, 2025

Sunday, March 2, 2025

मयख़ाना

तुझे बूंद बूंद चुनता हूँ,

धागा धागा बुनता हूँ,

बातों में तेरी इतना रस है,

इन्हें घूँट घूँट पीता हूँ,

तेरी बालियों में उलझा हूँ,

तेरी साड़ियों से लिपटा हूँ,

तेरे पर्स में छुपा बैठा,

मैं आईने का टुकड़ा हूँ,

तेरी कॉफी की भाप हूँ,

तेरी जोड़ी की नाप हूँ,

तेरे दोस्तों में छुपा बैठा,

मैं "तुम" से पहले "आप" हूँ,

तेरी कुर्ती की सरसराहट हूँ,

तेरी धड़कनों में मिलावट हूँ,

तेरे बोलों में छुपा बैठा,

मैं लबों की बड़बड़ाहट हूँ,

तेरी नींद का मैं हिस्सा हूँ,

ख़यालों से भी गुज़रा हूँ,

तेरी यादों से छुपा बैठा,

मैं एक भूला किस्सा हूँ,

तेरा गाया हुआ तराना हूँ,

तेरा सबसे बड़ा याराना हूँ,

तेरी आँखों में छुपा बैठा,

मैं सबसे बड़ा मयख़ाना हूँ...


Written on March 01-02, 2025

Saturday, February 17, 2024

ख़ामोशी

तू अभी नादान है

तेरे ख़यालों की दुनिया अभी आबाद है

यही तेरी ग़लती है

इसमें तेरी ग़लती तो कुछ नहीं

इसमें वक़्त की भी ग़लती नहीं

इसमें दुनिया की ग़लती है

दुनिया के सपनों की दुनिया

उठाती है गिराती है

मिलाती भी नहीं और जुदा भी नहीं

संभालेगी तो लेकिन देर तक नहीं

तू अभी ख़ामोश है

तेरे हिस्से की आवाज़

मेरे कानों में है

इसमें मेरी ग़लती तो कुछ नहीं

इसमें वक़्त की भी ग़लती नहीं

इसमें भीड़ की ग़लती है

भीड़ जो थोपती है क़ायदे

बनाती है मिटाती है

क़ायदे पसंद भी हैं और नहीं भी

क़ायदे चलते तो हैं लेकिन ज़्यादा दिन नहीं

तुझे अभी वक़्त और लगेगा

ये फ़ासला तय करने में

फ़ासला जो है भी और नहीं भी

लेकिन इन्हीं फ़ासलों में

लोग राहें भटकते हैं

मिलते हैं बिछड़ते हैं

राहें जो मिलाती भी हैं और नहीं भी

इसमें राहों की ग़लती तो कुछ नहीं

इसमें वक़्त की ग़लती है

जो वक़्त पर लोगों को मिलाता नहीं

वक़्त सबका आता तो है

लेकिन वक़्त पर आता नहीं

हम एक सफ़र पर हैं

सफ़र तो मन तय करता है

मन चुनता भी है लेकिन हर बार नहीं

सफ़र चाहे जैसा हो

दिल जुड़े हो सकते हैं

एक दूसरे की ख़बर रख सकते हैं

दुनिया बदल सकती है

दिल बदल सकता है

सपनें भी दिल चुनता है

दिल ही सपने दिखाता है

राहें बदल सकती हैं

दिल बदल देता है

दिल की आवाज़ सुननी ही पड़ती है

तुझे वो आवाज़ सुनाई दे

ऐसी ख़ामोशी चाहिए

इसमें तेरी ग़लती तो कुछ नहीं

इसमें दिल की ग़लती है

दुनिया का शोर दिल की ख़ामोशी

सुनने ही कब देता है


Feb 17, 2024 3:34 AM

Tuesday, February 15, 2022

महसूस

मैंने महसूस किया है

पत्थरों सा लुढ़कना

लुढ़कते हुए दूसरे पत्थरों से टकराना,

फिर ठहर जाने को 

मैंने महसूस किया है

नज़रों का बदलना

बातों का सिमटना

मन का धुंधलापन

अपनों में घटते अपनेपन को

मैंने महसूस किया है

किस्मत का बदलते रुख

लोगों के बदलते चेहरे

दोस्ती के बदलते पैमाने

रिश्तों की बदलती गहराई को

मैंने महसूस किया है

उसके चेहरे की फैली चांदनी

उसकी आँखों की काली सुरंग

उसके लबों पर गुलाब की पत्तियां

उसके बालों से गुज़रती हवाओं को

मैंने महसूस किया है

उसके बहते आंसुओं को

उसके अंदर बिखरे दर्द को

उसके होठों पर ठहरी बात को

उसके अंदर कांपते जज़्बात को

मैंने महसूस किया है

अपने भीतर एक जलन को

अपने मरते हुए इंसान को

अपनी खुशियों के दम घुटने को

खुदके इस्तेमाल किये जाने को

मैंने महसूस किया है

यादों में सिमटती रात को

तन्हाई में बीते हालात को

पन्नों पे बिखरे हुए ख़यालात को

अंधेरों में निकले हुए सूरज को

और चांदनी काटते हुए दिन को

मैंने महसूस किया है


Feb 15, 2022      11:10 PM

Monday, December 13, 2021

लफ़्ज

किताब लिख सकता हूँ,

कह नहीं सकता,

लफ़्ज तो हैं मग़र,

बात इतनी छोटी नहीं...

कितना कबसे पता कहाँ,

तुम पूछतीं तो बता न पाता,

नज़रें मैंने मिला तो लीं,

तुम न हटातीं तो मैं भी हटा न पाता....

खुलकर तुमसे कहता क्या,

कोई पूछा तब भी जाना नहीं,

इश्क़ मुश्क लग गया जहाँ,

कितना भी ढकता मैं छुपा न पाता...

शायरों से सीखी थी, ऐसे नहीं,

कोई मुझको समझा पाया भी नहीं,

कोई कहता भी के भूल जाओ उसे,

कितना भी कहता मैं भुला न पाता...

तुमने भी बढ़कर थामा नहीं,

मैं भी कब तक हाँथ बढ़ाता,

लेकिन अगर पकड़ लेता ना,

कितना भी करता कोई छुड़ा न पाता...

एक आख़िरी बात थी कहनी,

कल भी तुम थीं, आज भी तुम हो,

अब भी तुम हो और आगे भी,

बिना तुम्हारे बड़ी दूर चला हूँ

मैं भी तुम्हारे साथ,

कमबख्त कोई ताजमहल बन गया जैसे,

दिल मेरा तेरी मोहब्बत का

कब्रगाह बन गया जैसे,

कितना मिटाया मिटता ही नहीं,

दिल मेरा क़िताब पे लिखा

तेरा नाम बन गया जैसे,

लिखा भी तो मैंने ही था,

कितना भी करता कोई मिटा न पाता...


Dec 13, 2021      1:00 AM

Sunday, May 2, 2021

अंतर्द्वंद

एक सवाल उठा है मन में

याद रखूं या भूल जाऊं तुम्हें

कैसे भूलूँ सुबह की किरणें

कैसे भूलूँ तन्हाई

सभी जगह बस तुम ही तुम हो

तुम ही मेरी परछाईं

रात के कोहरे में भी तुम हो

तुम ही धूप सबल छायी

फूलों में देखा है तुमको

तुम्हीं महक बनके आईं

किसी तेज़ चंचल हवा में

किसी पेड़ की कनकलता में

नदी बनी चलती जाती हो

पल पल लेती अंगड़ाई

एक नदी तो तुम भी हो

सभी घाट तुममें मिलते

कोई किनारा टूट न जाये

बड़ा संभल कर चलती हो

खड़ा हूँ मैं भी बीच धार में

कुछ तो ध्यान करो मेरा

इस पार रहूँ उस पार रहूँ

या मुझे डूबा दो बीच घनेरा

मुझे खींच ले जाओ धार में

मुझे मिला लो अपने रंग में

मुझे रात की नींद भी दे दो

कभी तो देखूं एक सवेरा

आज फंसा हूँ अंतर्द्वंद में

तुम ही दिखती हो कण कण में

कैसे तुमसे नज़रें फेरूं

कैसे देखूं कोई नज़ारा

नज़र भी तुम हो

दरस भी तुम हो

और चमकता उजियारा


May 2, 2021          11:25 PM

Wednesday, January 27, 2021

खोज

ख़जाने ढूंढ हीरा ला,

चमकता एक टुकड़ा ला,

मेरे लिए थोड़ी मेहनत कर,

कहीं से खोज कर ले आ,

तड़कता ना हो भड़कता,

कहीं से न हो खटकता,

जो मुझको दिखलाये मैं कौन,

तू ऐसा एक शीशा ला,

भड़क जाए मगर ठंडा,

हो अपने साथ का बन्दा,

मिला ले हाँथ न छोड़े,

मेरे लिए ऐसा साथी ला,

लड़कपन सी मोहब्बत ला,

नज़र मासूमियत की ला,

कोई छू दे तो जल जाए,

मेरे लिए ऐसी हमदम ला,

लगाए कीमतें लाखों,

कोई भी उसकी सादगी की,

बिके न तब भी पल भर को,

मेरे लिए ढूंढ, उस को ला,

अदाएं बांकपन की हों,

ज़रा सा वो संवरती हो,

कोई बोले तो वो गाये,

तू ऐसी दिलकशी को ला।



Jan 27, 2021       12:31 AM

Monday, June 15, 2020

इंतज़ार

कहने को अब कुछ बाकी ही ना रहा,

कुछ शब्द भी न रहे,

तकरार भी न रही,

तख़्त भी न रहे,

तलवार भी न रही,

घर का भी क्या सोचता मैं,

दर भी न रही,

दीवार भी न रही,

पर भी न रहे,

परवाज़ भी न रही,

परवरदिगार से कोई उम्मीद भी न रही,

बड़ा बेसब्र कर के रख दिया था तुमने,

अब ख्याल भी न रहा,

तेरी कोई चाह भी न रही,

बची हैं कुछ चीज़ें अब भी लेकिन,

तेरी यादों में लिपटे ख्याल बचे हैं,

तेरे चेहरे में डूबी ये आँखें बची हैं,

तेरा नाम लेने से कांपते से होंठ,

तेरी हांथों से छुई हुई थोड़ी से खाल,

तेरे दरिया में डूबा हुआ छोटा सा दिल,

तेरे बिना खाली पड़ा मेरा शरीर,

तेरे घर जैसा अब भी बचा है,

बचा है अब भी वही सवाल,

कि इतनी ज़रूरी तू क्यों हैं,

समंदर में डूबे हुए कुछ सूखे पन्ने,

स्याही सी बहती हुई नदिया की धारा,

तेरी ना ना मेरा इंतज़ार आज भी बचा है।


Jun 15, 2020      10:44 PM

Friday, August 30, 2019

बहुत

है मंज़िल का इंतज़ार बहुत,

है रास्ता भी बेज़ार बहुत,

हम दर्द में चलते जाएंगे,

है तेरी भी दरकार बहुत...

नदिया में दर्रे भी हैं बहुत,

दरिया से मिलना भी है बहुत,

हम अब ना रोक पाएंगे,

हम में भी लहरे हैं तो बहुत...

मंज़िल की कोशिश की तो बहुत,

चट्टानों से लड़ते थे बहुत,

लेकिन तेरी खामोशी ने,

हमको भी है तड़पाया बहुत...

सेहरा में भी रौशन था बहुत,

सूरज से भी मांगा था बहुत,

हम नींद में तुझको पाएंगे,

ऐसी फ़ीकी किस्मत थी बहुत...


Aug 30, 2019    11:42 PM

Saturday, August 4, 2012

निर्भय

मैं आगे बढ़ता रहता हूँ,
पीछे मुड़कर नहीं देखता,
यादों और बीती बातों को,
किस्मत से नहीं तौलता।

मंज़िलें तो आती रहती हैं,
मैं रुककर नहीं सोचता,
हर एक मंज़िल के पत्थर पर,
किसी का रास्ता नहीं देखता।

मैं हर पल सोचा करता हूँ,
मैं हर पल बढ़ता रहता हूँ,
मैं हर पल वादा करता हूँ,
खुद को मैं कभी नहीं रोकता।

यूँ खुद का ही मैं साथी हूँ,
यूँ खुद ही राहें पाता हूँ,
हर रात यही सब सोचकर,
मैं खुद को नहीं मारता।

मैं बात पते की करता हूँ,
मैं काम समझ कर करता हूँ,
ये वक़्त मुझे सिखलाता है,
मैं रुकना ही नहीं चाहता।

मेरे आगे कितने पत्थर हैं,
ये राह मुझे बतलाती है,
ठोकर तो लगती रहती है,
ठोकरों से अब नहीं रुकता।

ये सफर मुझे सिखलाते हैं,
ज़िन्दगी बिना आराम की है,
हर वक़्त यहाँ बस चलना है,
अब चलने से नहीं थकता।

आँखों में ऐसे सपने हैं,
सच जब होंगे तब अपने हैं,
सपनों की दुनिया में बहकर,
उनकी धारा मैं नहीं रोकता।

ज़िन्दगी मेरा नाम लेती है,
साँसें भी एक मुकाम देती हैं,
कहती है मेरी धड़कन भी,
तू अब किसी से नहीं डरता।

Written During A Journey On Train....

आवारापन

आवारापन की आदत है मुझको,
ये ज़िन्दगी भी अब आवारापन-सी लगने लगी है।

आवारा धड़कन है,
आवारा इस मन में तू,
आवारा-सी होकर तू भी,
इस दिल में भटकने लगी है।

आवारा ख़्वाहिश है,
आवारा-से संगीत में तू,
आवारा-सी होकर तू भी,
सरगम की तरह बजने लगी है।

आवारा दास्तान है,
आवारा-सा किरदार हूँ मैं,
आवारा-सा होकर मैं भी,
तेरी ही धुन पर बहकने लगा हूँ।

आवारा मेरी कश्ती है,
आवारा बनकर बहती है,
आवारा-सी होकर तू भी,
उसको सागर में भटकाने लगी है।

आवारा मन की नदी है,
आवारा बनकर बहती है,
आवारा-सी होकर तू भी,
इस मन की तपन छुपाने लगी है।

Written During A Journey On Train....

Saturday, April 14, 2012

धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे

बचपन की यादों में से चुराई हुई एक कविता


हँसते हँसते तुम मेरी यादों को दिल से मिटाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे,

भूल जाओगे कि हमने भी बाँटी थी रोटी,
खाए भी ऐसी थाली में जो थी थोड़ी छोटी,
मगर उस थाली से बड़े हमारे दिल थे,
बड़े प्यार से हम एक दूसरे का मुँह भरते थे,
उन टुकड़ों की मिठास को अपने दिल से मिटाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे,

भूल जाओगे कि हमने भी खिलौने थे तोड़े,
शामभर खेलकर भी ना थकते थे थोड़े,
उन टूटे खिलौनों में हम मुस्कुराते थे,
उन खिलौनों से थोड़े से सपने चुराते थे,
उन गुड़ियों के खेलों को अपने दिल से मिटाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे,

भूल जाओगे हमने था बारिश में नहाया,
उन ताज़ी सी बूँदों को माथे पे सजाया,
वो बारिश भी धुलकर खुश सी हो जाती थी,
खुशियों से हमारी मुलाक़ात सी हो जाती थी,
उस सावन की बारिश को अपने दिल से मिटाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे,

भूल जाओगे हम दोनों मिलकर के रोते थे,
हम सब के माँ बाप जब ग़ुस्सा होते थे,
घरों में जब हमने उधम थी मचाई,
सब मिलकर हँसते जब शैतानी थी रंग लाई,
उन शैतानियों को अपने दिल से मिटाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे,

भूल जाओगे जब हमने शीशा था तोड़ा,
सुनकर मेरी बात माँ का गरमाना थोड़ा,
छुट्टी होते ही खेतों से गन्ने चुराना,
मीठे रस के टुकड़ों से यूँ ही मुस्कुराना,
उन हँसते लम्हों को अपने दिल से मिटाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे,

भूल जाओगे तुम मेरे गीतों के बोल,
वो सारी बातें जब खुल गई थी पोल,
मेरी इस हस्ती को इस क़दर भुलाओगे,
चाहोगे तो भी ना मुझे याद कर पाओगे,
हर बात हर हँसी इस तरह दफ़नाओगे,
ढूँढोगे उनकी क़ब्र तो भी ना ढूँढ पाओगे,
हर कड़ी तोड़कर जब तुम दूर जाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे,
धीरे धीरे तुम मुझको भूल जाओगे……


WRITTEN IN JULY 2011

कुछ सवाल तुम्हारे लिए

ये चाल है या कोई साज़िश हो रही है,
क्यों इन लम्हों के दरमियाँ हम दूर हो रहे हैं?
क्या तुम्हें नहीं लगता साथ बीते हुए पल हमें फिर से बुला रहे हैं?
ये क्यों हो जाता है, ये कैसे हो रहा है?
क्यों जो बातें हमें पास लाती थीं, दूर ले जा रही हैं?
क्या हमारा अभिमान हमारे रिश्ते को निगल रहा है?
क्या सवेरा शाम सा ही ढल रहा है?
क्या तुम्हारी ही ख़ुशी मेरी ख़ुशी नहीं थी?
क्या तुम्हारी ही हँसी मेरी हँसी नहीं थी?
हमारे रिश्ते में दूरियाँ कहाँ से आ रही हैं?
इन्हीं दूरियों में ग़लतफ़हमियाँ समा रही हैं....
क्या तुम्हें नहीं लगता हम अपने रास्ते बदल रहे हैं?
या कि लगता है नींद में करवट बदल रहे हैं?
सफ़र कैसा भी था हम बस आपके सहारे पर जी रहे हैं.....
क्यों तुम्हारी उम्मीद हमेशा मुझको रहती है?
तुम्हारा हाल जानकर ही साँसों में साँस बहती है....
तड़प दिल की निगाहों से बयान हम क्यों नहीं कर रहे हैं?
तुम्हारे लिए ही तो चेहरे पर इक हँसी सजा रखी है....
मुझे समझना ही मुश्किल है, समझ पाओगी तुम कैसे?
मेरा दिल भी न धड़का जब से तुम्हें देखा नहीं हँसते.....
जिस दिन मेरे इन सवालों का जवाब तुम दोगी,
उस दिन समझ लेना हम तुमसे दूर हो गए हैं....
लेकिन तुम्हारे साथ की आशा में हम क़यामत से जी रहे हैं....


WRITTEN ABOUT BROKEN RELATIONSHIP'S ...!!!

ऐसी दोस्ती

साथ ही चले थे हमारे रास्ते जब से हमने थामे थे हाथ,
लेकिन वक़्त की अंगड़ाइयों के साथ मुझे पीछे छोड़ गए आप,
कहा था हर आँसू हर मुस्कान में देंगे तुम्हारा साथ,
फिर जाने क्यों मुँह मोड़ लिया, जाने क्या थी बात?
दोस्ती निभाई ऐसी कि दिल में भी हज़ारों सुराख़ कर दिए,
उनके ना निकले एक भी आँसू जो हमारे दामन में अंगारे रख कर चल दिए,
कितने ही दिन बीत गए हम उनकी एक हसीं मुस्कान के साथ जीते रहे,
वो हमारे दिल का दर्द बढ़ाकर हमारे आँसुओं से पौधे सींचते रहे.....


WRITTEN IN SEPTEMBER 2011

Sunday, October 16, 2011

अनछुई सी तस्वीर

उस दिन जब से मैंने आँखें थी खोली,

तब से दिल ने भी कोई बात मुझसे न बोली,

अंदर ही अंदर जला जा रहा था,

राख बनकर मिटा जा रहा था,

एक परछाईं मुझे खींचती चली जा रही थी,

इतने उजाले में भी वो अंधेरों से मिली जा रही थी,

मैं उसके साथ जाऊँ न जाऊँ,

उस अंधेरे में समाऊँ या न समाऊँ,

हर कदम एक डर था,

जबसे तू मेरा रहगुज़र था,

इश्क़ का दलदल मुझे पल पल दफ़न कर रहा था,

हर सुबह हर रात मैं अपना क़त्ल जो कर रहा था,

वो अंधेरा भी मुझसे यही बताने आया था,

उजाला उस ओर नहीं जिस ओर मैं जा रहा था,

मंज़िल उस ओर नहीं जिस ओर मैं क़दम बढ़ा रहा था,

फिर हर सुबह की तरह रोया, शाम की तरह मुस्कुराया,

कि वो आज भी न आया था,

मैं तो बस यादें साथ लाया था,

फिर झुंझलाकर मैंने उसकी तस्वीर जला दी,

उसकी सूरत, उसकी राख मिट्टी में मिला दी,

पर उस शाम मैं रोया और सुबह मुस्कुराया,

उसकी तस्वीर “अनछुई” मेरे दिल में अब भी बाक़ी थी!!!!!!


Written on 29th July,2011 2:55 P.M.

Sunday, April 17, 2011

"Hare Suit Wali Ladki"/"हरे सूट वाली लड़की"

पूरे ध्यान से पढ़ें, मुझे लगता है आपको अच्छी लगेगी :)






जब चिड़िया ने भी सूरज की किरणों को था महसूस किया
तब इक सुन्दर सी लड़की ने भी हरा रंग था ओढ़ लिया
बालों से उसके अब भी कुछ पानी की बूंदें गिरती हैं
उन गीले काले बालों पे वो हरा सूट कुछ खिलता है
जब उन गीले बालों को वो आँगन में बैठी सुलझाती है
तो कुछ चमकीली सी बूँदें मोती बनकर बिछ जाती हैं
उस हरे सूट को था उस शीशे ने भी पहचान लिया
जिसको उस लड़की ने बाज़ार से कुछ दिन पहले मोल लिया
जब खुद ही बैठी शीशे से वो खुद को तकती जाती है
तो उसकी आंखें भी उस हरे सूट पे मुस्काती हैं
जब माँ ने अपनी लड़की को उस हरे सूट में देखा है
तो मन ही मन में उन्हें मामला कुछ गड़बड़ सा लगता है
फिर माँ ने नाश्ते की प्लेट देते ही कुछ है पूछ लिया
पर दबी हुई आवाज में लड़की ने है जवाब दिया
फिर उसी समय जब लड़की घर से बाहर को निकलती है
वो हरे सूट में कॉलेज आती कितनी अच्छी लगती है


छोटी गलियों में उसको कुछ चेहरे ख़ुशी के दिखते हैं
उसकी सहेलियों के तो जैसे जिगर सुलगने लगते हैं
उस तंग गली में अक्सर उसको जाने पहचाने लड़के मिलते हैं
जो हर सुबह-शाम इसी तरह से उसका पीछा करते हैं
उस हरे सूट को था उन लड़कों ने भी पहचान लिया
जिसको उस लड़की ने बाजार से कुछ दिन पहले मोल लिया
उन लड़कों की भी उसी समय सारी बांछें खिल जाती हैं
वो हरे सूट में कॉलेज आती कितनी अच्छी लगती है



पतली गलियों से निकलकर जब वो मेन सड़क पर आती है
कॉलेज की गाड़ी भी पलभर में हॉर्न दे आ जाती है
जब उसको उसके कुछ साथी सहपाठी लड़के तकते हैं
उसकी सहेलियों के तो जैसे जिगर सुलगने लगते हैं
बस में चढ़ते ही जब वो धीरे से मुस्काती है
तो थोड़ा झुककर वो फिर अपनी आँखों में शर्माती है
जब वो अपनी हर दिन वाली बँधी सीट पे बैठी है
वो हरे सूट में कॉलेज आती कितनी अच्छी लगती है




फिर थोड़ा बस आगे निकली तो कुछ ने उसका नाम लिया
कुछ दूर देख ही मुस्काये कुछ ने उसको सलाम किया
बस उसी समय वो हरा सूट फिर चर्चा में आ जाता है
कुछ लड़कों का तो जिग्गरा उनके पिंजरे से छुट जाता है
जब उसे देखने को खिड़की में कुछ गाडी भिड़ जाती हैं
जब कुछ गाड़ियां उसी के लिए कुछ करीब आ जाती हैं
उसकी खामोश नज़रें भी एक कहानी कहती है
वो हरे सूट में कॉलेज आती कितनी अच्छी लगती है



जब कॉलेज की गाड़ी चलकर कॉलेज में दाखिल होती है
और वो लड़की बस के दरवाजे से धीरे से पग धरती है
फिर हर एक चेहरे की नज़रें उस लड़की पे टिक जाती हैं
उस हरे सूट की धारियां उस लड़की सी खिल जाती हैं
उसकी सहेलियों के तो जैसे जिगर सुलगने लगते हैं
कॉलेज में बैठे लड़के तो फिर कमल से खिलने लगते हैं
जब वो उस बस से दूर निकलकर गार्डन तक आ जाती है
वो हरे सूट में कॉलेज आती कितनी अच्छी लगती है


उस हरे सूट को था उन भंवरो ने भी पहचान लिया
जिसको उस लड़की ने बाजार से कुछ दिन पहले मोल लिया
उस गार्डन में बैठा मैं उसका चेहरा तकता जाता हूँ
उस हरे सूट में उसे देख मैं जाने कहाँ खो जाता हूँ
उस लड़की ने भी आँखों के कोने से मुझको देख लिया
उसकी उन कजरी आँखों ने था मेरे जिगर को भांप लिया
फिर उसी समय जब वो लड़की यूँ धीरे से मुस्काती है
वो हरे सूट में कॉलेज आती कितनी अच्छी लगती है



जब आगे चलकर वो मेरे थोड़े करीब आ जाती है
उस हरे सूट की धारियां भी मुझसे यूँ बतियाती हैं
उसकी सहेलियों के तो जैसे जिगर सुलगने लगते हैं
उन फूलों के पौधों में वो कुछ धीरे से कह जाती है
उसकी बातों की मिठास से मैं दिल से खिलता जाता हूँ
मेरी खुशियों की खातिर ही उसने था कहना मान लिया
मेरे ही कहने पर उसने उस हरे सूट को ओढ़ लिया
उस हरे सूट से वो कॉलेज में जादू सा फैलाती है
वो हरे सूट में कॉलेज आती कितनी अच्छी लगती है।




PENNED ON TUESDAY 12TH OF APRIL,2011

Tuesday, April 12, 2011

तेरा साथ

भीनी भीनी सी महक आए,
तेरी बातों के संदेसे लाए,
जब हवा चले यूँही बलखाए,
अनजानी यादों को आए और छेड़ जाए,

के थोड़े बादल जब भी आते हैं,
खुले आकाश में नहाते हैं,
जब हम गीत कोई गाते हैं,
फिर हम पानी छपछपाते हैं,
तो तुम ऐसे मुस्कुरा जाती हो,
जैसे पल वो सज़ा जाती हो,

जब भी हमारी बातें कम पड़ जाती थीं,
हमारे बीच एक ख़ामोशी सी छा जाती थी,
तब हमारी धड़कनें ही आवाज़ करते हुए कुछ कहती थीं,
एक दूसरे की बाहों में फिर समा जाती थीं,
तब तुम ऐसे प्यार से देखती हो,
जैसे बातें कई बताना चाहती हो,

क्यों न अगले कुछ दिनों को,
हम इस तरह से सजाएँ,
कि अपनी आने वाली ज़िन्दगी में,
इन्हें कभी भी न भूल पाएँ।

आओ मिलकर साथ चलें,
कुछ लम्हों को बाँट लें...




WRITTEN IN MIDNIGHT OF FEBRUARY 14,2009

My First Poem - चंदा

चंदा ओ चंदा,
कभी पास तो आ,


आकर कभी,
कोई गीत गा,
जिसे ख़यालों में सुना है तुझे याद करके,


आकर कभी,
दो बातें कर,
जिन्हें सुनकर प्यार की बूँदों से मन भर जाए,
जिस आवाज़ की खनक से चेहरा खिल जाए,


आकर कभी,
कोई जादू कर,
जिससे मैं हर ख़ुशी हर ग़म से दूर हो जाऊँ,


इस कारवाँ से तेरी याद लिए,
उसी तरह मरूँ जैसे ईश्वर के चरणों में
चढ़ा कोई फूल सूख गया हो...




WRITTEN IN ELEVENTH STANDARD

Monday, April 11, 2011

मेरे हमदम

सताने से, बहाने से,
तू जो ना आई बुलाने से,
तो मेरा वादा है हमदम,
तेरी यादें बुला लूंगा।


मैं किस्सों से या बातों से,
तेरे हसीन ख़यालातों से,
ये मेरा वादा है हमदम,
तेरी महफ़िल सजा लूंगा।


मैं फूलों से या पत्तों से,
तेरे आँगन के पौधों से,
ये मेरा वादा है हमदम,
तेरा बिस्तर लगा लूंगा।


सज़ी बारिश की बूँदों से,
या अपने इन आँसुओं से,
ये मेरा वादा है हमदम,
तुझे जलधार ला दूंगा।


क़दम तेरे मोहब्बत से,
उठे होंगे जो चाहत से,
ये मेरा वादा है हमदम,
उन्हें मैं हर मकाम दूंगा।


मैं आँखों से या होठों से,
तेरी धड़कन धड़कने से,
ये मेरा वादा है हमदम,
तेरा दिल-ए-इश्क़ पा लूंगा...

आशिक़ी की कसक

दिल की गहराइयों ने मेरी कुछ उनसे कहा ऐसा जिसे वो सुन न सके,
एक झलक भी न नज़र उठा कर देखा मुझे,
बस कह दिया जाओ मोहब्बत नहीं है तुमसे,
इसी बात ने वार ऐसा किया जो हम सह न सके।

उनकी दीवानगी में खोए रहे उम्र भर,
उनके चेहरे को चाँदनी सा कहते रहे,
हमेशा उन्हीं की खुशी की आस की,
भले ही कितने आँसुओं में बहते रहे।

उन्हें दूर से यूँ ही तकते रहे,
कहीं देख न ले यूँ ही डरते रहे,
मगर न पता था कि वो प्यार क्या था,
चिरागों से जब उसको रोशन किया था।

उन्हीं चिरागों ने जीवन है फूँका ये मेरा,
जैसा रातों में जलता सुलगता सवेरा,
जले दिल से ज़्यादा हम जलते रहे,
अंधेरों में छिपकर सिसकते रहे।

मेरा दिल भी मुझसे ये पूछे हमेशा,
क्यों बंजर में खेती हम करते रहे?
कसकती रहेंगी ये साँसे हमेशा,
लबों पे जब भी उनका नाम होगा।

कह ये देना उन्हें के रख ले इज़्ज़त किसी के प्यार की,
वरना आशिक कोई फिर न बदनाम होगा.....



PENNED AT 9:30PM, MAY6,2010

छोटा सा सफ़र

ज़िन्दगी की सोच ले आई कहाँ पे,
है वादों की तस्वीर झूठी जहाँ पे,
कोई तपके सोना हुआ है यहाँ पे,
कोई अपनी पहचान खोता यहाँ पे।



ये जलते क़दम, ये झुकती कमर,
यही मेहनतकशों की तस्वीर है,
चुभन काँटे की या शिकन माथे की,
ये सब अपनी-अपनी ही तक़दीर है।



अगन का अगन से भी मिलना कहाँ पे,
है पानी का सैलाब बहता जहाँ पे,
कोई खुश है इतना कि सारे जहान से,
कोई है जो रो भी न सकता यहाँ पे।



ये अंधी नज़र, उम्र का असर,
बस कुछ दिनों का ही खेल है,
कहाँ से कहाँ तक है चलना सफ़र,
दिलों से दिलों का यहीं मेल है....



PENNED AT 2:30 AM, MAY,5,2010

Thursday, January 13, 2011

वक़्त

ये वक़्त गुज़रता जाएगा,
संसार बदलता जाएगा,
इस सफ़र में तू पहचान न खो,
हाथों से फिसलता जाएगा।


रास्ते में मिलेंगे कई साथी,
कोई साथ रहेगा, कोई साथ छोड़ जाएगा,
कोई दे जाएगा महकते लम्हे,
कोई ग़म देगा, कोई ग़म बाँट जाएगा।


कोई साथ का ही देगा धोखा,
कोई ताकेगा कोई मौका,
कोई दूर तक साथ निभाएगा,
कोई देकर ऐसी कोई शिक्षा,
भर देगा तुझमें प्रकाश,
कोई ज्ञान की बात सिखाएगा।


कोई तुझको ख़ुशियों से भरकर,
कोई हर एक बात पर हँसाकर,
तुझे मस्ती करना बतलाएगा,
कोई चाहेगा तेरी ख़ुशियाँ,
तुझे मुस्कुराता हुआ देखकर,
कोई दिल से ही मुस्काएगा।


मगर इसी सफ़र में एक ऐसा समय आएगा,
जब तेरा दिल भी किसी का साथ चाहेगा,
जिसकी ख़ुशियों के लिए तू मुस्कुराएगा,
जिसके ग़मों में तू आँखों से साथ निभाएगा,
जिसकी बातों से ही तेरा रोम-रोम खिल जाएगा,
जिसकी ख़ुशबू को तू साँसों में भरना चाहेगा,
ऐसी ही कुछ यादों को तू दिल से पिरोता जाएगा,
इन्हीं छोटी-मोटी बातों में एक साल निकल जाएगा।


ये वक़्त गुज़रता जाएगा,
संसार बदलता जाएगा...

Written on New Year's Eve 2010

चिक्की

मुझे तुम याद आती हो शाम की बहती हुई नदी की तरह सारे आकाश में फैली बादलों के बीच में तन्हाई समेटे हुए अंगड़ाई लेती हुई चेहरे पर उदासी की परत क...